Mythology

Thawe Durga Temple Story

थावे दुर्गा मंदिर की स्थापना की कहानी काफी रोचक है। चेरो वंश के राजा मनन सिंह खुद को मां दुर्गा का बड़ा भक्त मानते थे, तभी अचानक उस राजा के राज्य में अकाल पड़ गया। उसी दौरान थावे में माता रानी का एक भक्त रहषु था। रहषु के द्वारा पटेर को बाघ से दौनी करने पर चावल निकलने लगा। यही वजह थी कि वहां के लोगों को खाने के लिए अनाज मिलने लगा। यह बात राजा तक पहुंची लेकिन राजा को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था। राजा रहषु के विरोध में हो गया और उसे ढोंगी कहने लगा और उसने रहषु से कहा कि मां को यहां बुलाओ। इस पर रहषु ने राजा से कहा कि यदि मां यहां आईं तो राज्य को बर्बाद कर देंगी लेकिन राजा नहीं माना। रहषु भगत के आह्वान पर देवी मां कामाख्या से चलकर पटना और सारण के आमी होते हुए गोपालगंज के थावे पहुंची .मां के प्रकट होते ही रहशु भगत का सिर फट गया और मां भवानी का हाथ सामने प्रकट हुआ. मां के प्रकटट होने पर रहशु भगत को जहां मोक्ष की प्राप्ति हुई. वहीं मां के प्रकाश से घमंडी राजा मनन सिंह का सबकुछ खत्म हो गया.

एक अन्य मान्यता के अनुसार, हथुआ के राजा युवराज शाही बहादुर ने वर्ष 1714 में थावे दुर्गा मंदिर की स्थापना उस समय की जब वे चंपारण के जमींदार काबुल मोहम्मद बड़हरिया से दसवीं बार लड़ाई हारने के बाद फौज सहित हथुआ वापस लौट रहे थे। इसी दौरान थावे जंगल मे एक विशाल वृक्ष के नीचे पड़ाव डाल कर आराम करने के समय उन्हें अचानक स्वप्न में मां दुर्गा दिखीं। स्वप्न में आये तथ्यों के अनुरूप राजा ने काबुल मोहम्मद बड़हरिया पर आक्रमण कर विजय हासिल की और कल्याण पुर, हुसेपुर, सेलारी, भेलारी, तुरकहा और भुरकाहा को अपने राज के अधीन कर लिया। विजय हासिल करने के बाद उस वृक्ष के चार कदम उत्तर दिशा में राजा ने खुदाई कराई, जहां दस फुट नीचे वन दुर्गा की प्रतिमा मिली और वहीं मंदिर की स्थापना की गई .

loader